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रे मन निर्मल पावन हो जा
रे मन निर्मल, पावन हो जा,
सबका तु मन भावन हो जा ।
आगे बढ़ तु ,अतीत भूल कर ,
मथुरा और वृन्दावन हो जा ।
कुछ चीज़े मोह लेंगी तुझको ,
कुछ बातें छोलेंगी तुझको ।
यहीं उलझ तू, मत रह जाना ,
सरस तपस्वी का तन हो जा ।
तु बन जा, एक अथाह समुन्दर,
सब कुछ तू ले ले खुद अंदर ।
सबके लिये हो जा सुखदायक ,
तु काऊ पेड़ की छावन हो जा ।
झूठे झमेले छोड़ दे सारे ,
इत उत मत भटके मेरे प्यारे ।
स्नेह प्रेम उपजा खुद अंदर,
फूलों वाला दामन हो जा।
सब तेरे है तू सबका बन ,
शील,विनय ,आदर शृद्धा बन ।
बड़ों का कर मेरे मन सम्मान,
समदर्शी तू ऐ सावन हो जा ।
“सावन चौहान कारौली” एक नादान कलमकार
भिवाड़ी अलवर राजस्थान
मो.9636931534
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