मंगलवार, 24 अगस्त 2021

O Mana Le chal mujhe

 

 ओ मना (मन) लेे चल मुझे


ओ मना लेे चल मुझे




ओ मना लेे चल मुझे राम के #देश में

जहां रावण न हो ~ ~ सन्त के वेश में


जहाँ पौरुष की नियत में कीचक न हो

जहाँ #महफूज हो, हर इक नन्ही कली

जहां बेटी का होना;# न #अभिशाप हो

और चिकित्सक न हो, #कंस के भेष में

ओ मना ले चल मुझे…

जहां #रावण न हो…


जहाँ बेटी की शादी हो~~~ सौदा न हो

किसी बाबुल की खेत औ जमी न बिकेे

ज़र के लालच में लाड़ो ~~ बली न चढ़े

और चिता न जनक की, ~ जले ठेस में

ओ मना ले चल मुझे...

जहाँ रावण न हो...


जहाँ जाति-धर्म, की दीवारें न हो

जहां शेखी की झूठी मिनारें न हो

जहाँ भाई लखन और भरत जैसे हो

जहाँ समता की खुशबू हो परिवेश में

ओ मना ले चल मुझे...

जहाँ रावण न हो


जहां वादो इरादों में धोखा न हो

जहां रिश्तों का बाना यूं खोका न हो

जहां घर में बुजुर्गो का सम्मान हो

नातें टूटे ना सावन, कहीं तेश में


ओ मना लेे चल

जहां रावण न है


कवि - सावन चौहान कारोली

24-08-2021

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