ओ मना (मन) लेे चल मुझे
ओ मना लेे चल मुझे
ओ मना लेे चल मुझे राम के #देश में
जहां रावण न हो ~ ~ सन्त के वेश में
जहाँ पौरुष की नियत में कीचक न हो
जहाँ #महफूज हो, हर इक नन्ही कली
जहां बेटी का होना;# न #अभिशाप हो
और चिकित्सक न हो, #कंस के भेष में
ओ मना ले चल मुझे…
जहां #रावण न हो…
जहाँ बेटी की शादी हो~~~ सौदा न हो
किसी बाबुल की खेत औ जमी न बिकेे
ज़र के लालच में लाड़ो ~~ बली न चढ़े
और चिता न जनक की, ~ जले ठेस में
ओ मना ले चल मुझे...
जहाँ रावण न हो...
जहाँ जाति-धर्म, की दीवारें न हो
जहां शेखी की झूठी मिनारें न हो
जहाँ भाई लखन और भरत जैसे हो
जहाँ समता की खुशबू हो परिवेश में
ओ मना ले चल मुझे...
जहाँ रावण न हो
जहां वादो इरादों में धोखा न हो
जहां रिश्तों का बाना यूं खोका न हो
जहां घर में बुजुर्गो का सम्मान हो
नातें टूटे ना सावन, कहीं तेश में
ओ मना लेे चल
जहां रावण न है
24-08-2021
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