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अदब से दिल में उफनता हुआ दरिया सम्भाल रखा है
कोई उनसे न कुछ कहदे बखूबी भी ~~ख्याल रखा है
हजारो जख्मों को तोहफा समझ ~~~~ कबूल किया
हजारों अश्कों को शेरो में~~~~~~~ ढाल रखा है
हमे खाब की जूं भुला तो न दोगे
हमे खाब की जूँ, भुला तो न दोगे
मुहब्बत तो करलें दगा तो न दोगे
अभी तो जुनूं है जवानी का’ सर पे
सरे राह दामन छुड़ा तो न लोगे
दबी आग को फिर से ऐसे न छेड़ो
अगर ये जली फिर बुझा तो न दोगे
मिरा दिल ये नाजुक है शीशे के जैसा
तुम्हे सौंप दूं तुम गिरा तो न दोगे
नहीं जानता मैं पहेली बुझाना
मिरे सीधेपन की सजा तो न दोगे
कहीं बीच रस्ते ज़फ़ा तो न दोगे
मुहब्बत की बाज़ी सदा ही मैं हारा
कहीं घाव दिल पे नया तो न दोगे
मैं मरके भी सावन भुला ना सकूँगा
कहीं तुम निगाहें चुरा तो न लोगे
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सावन चौहान कारोली -एक ग़ज़लकार
भिवाड़ी अलवर राजस्थान