गुरुवार, 23 सितंबर 2021

हमे खाब की जूं भुला तो न दोगे

 

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अदब से दिल में उफनता हुआ दरिया सम्भाल रखा है

कोई उनसे न कुछ कहदे बखूबी भी ~~ख्याल रखा है

हजारो जख्मों को तोहफा समझ ~~~~ कबूल किया

हजारों अश्कों को शेरो में~~~~~~~ ढाल रखा है 



हमे खाब की जूं भुला तो न दोगे


हमे खाब की जूँ, भुला तो न दोगे
मुहब्बत तो करलें दगा तो न दोगे


अभी तो जुनूं है जवानी का’ सर पे

सरे राह दामन छुड़ा तो न लोगे


दबी आग को फिर से ऐसे न छेड़ो

अगर ये जली फिर बुझा तो न दोगे


मिरा दिल ये नाजुक है शीशे के जैसा

तुम्हे सौंप दूं तुम गिरा तो न दोगे


नहीं जानता मैं पहेली बुझाना

मिरे सीधेपन की सजा तो न दोगे


बड़ी ही कठिन है ये उल्फ़त की राहें

कहीं बीच रस्ते ज़फ़ा तो न दोगे


मुहब्बत की बाज़ी सदा ही मैं हारा

कहीं घाव दिल पे नया तो न दोगे


मैं मरके भी सावन भुला ना सकूँगा

कहीं तुम निगाहें चुरा तो न लोगे

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सावन चौहान कारोली -एक ग़ज़लकार

भिवाड़ी अलवर राजस्थान