बुधवार, 25 अगस्त 2021

मानव धर्म

 

मानव धर्म

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मेरा तेरा फकत इक वहम हैं

हमह हमारा ही मानव धरम है


जिसने सारे जहाँ को बनाया

सब उसी के ही रहमों करम हैं


एक ही पेड़ की सब हैं डाली

एक ही बाग के फूल हम हैं


कोम का जाल हमने बुना है

जिसमें उलझे हुए आज हम हैं


धर्म का मर्म समझे न कोई

सब ने पाले अलग ही भ्रम हैं


बेसहारों को देना सहारा

आदमी का असल में धरम हैं


फालतू के झमेले हैं बाकी

पालता क्यूँ तु ऐसे भरम है


कितने ही जन्म हैं लेने पड़ते

आदमी का मिले फिर जनम है


कवि - सावन चौहान कारोली


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