एक कविता- सुनहैरी धुंध
मालिक के किये हिस्से चार ।
मालिक के किये हिस्से चार ।
कितना जालिम है संसार ।।
धर्म का मर्म ना जाने कोई ।
मानवता जाने कहाँ खोई ।।
स्वारथ भेंट चढ़ी सच्चाई ।
कितनी बेबस है अच्छाई ।।
मंदिर मस्जिद बनी दुकान ।
पैसा बन बैठा भगवान् ।।
पापी मौज़ करे, फले फूले ।
और भलाई फंदे झूले ।।
राजनीत की धुंद सुनहैरी ।
वाह री जनता अंधी,बहरी ।
जात पात की गहरी खाई ।
जिसने दुनियां है बोराइ ।।
बेईमानी के सर पे ताज ।
ईमानदारी पड़ी नासाज ।।
अच्छों को मिलती हैं गाली ।
मक्कारों को मिलती ताली ।।
झूठ चाशनी लगे सुहानी ।
सत्य कहे मर जाए नानी ।।
सावन चौहान कारौली- एक कलमकार ...✍
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Sawan ki Hindi kavita