मंगलवार, 16 जुलाई 2019

ऐ बचपन फिर लौट के आजा


ऐ बचपन फिर लौट के आजा

ऐ बचपन फिर लौट के आजा,
वापिस तू एक बार ।
लाड लड़ाते थे सब कितना,
देते थे उपहार ।


दीदी भैया गोद उठाके,
फुले नहीं समाते थे ।
जिस की हम फरमाइश करते,
वो ही हमे खिलाते थे ।
बहुत याद आता सवान,
मम्मी का दुलार ।
ऐ बचपन तू लौट के आजा,
वापिस तू एकबार ।
लाड लड़ाते थे सब कितना,
देते थे उपहार ।


छोटी छोटी बातों पे कभी हम भी,
रूठा करते थे,
हरियाली तीज आती थी तो ,
पतंग भी लुटा करते थे ।
खाना ना खाते थे रूठ के,
होती थी मनवार ।
ऐ  बचपन फिर लौट के आजा,
वापिस तू एकबार,
लाड लड़ाते थे सब कितना,
देते थे उपहार ।


याद है कोई साधन ना था ,
उस वक़त मनोरंजन का ।
चूल्हे की बस राख होती थी,
चलन ना था किसी मन्जन का
फागुन में होली सुनते थे,
सावन में मल्हार ।
ऐ बचपन फिर लौट के आजा,
वापिस तू एक बार ।
लाड लड़ाते थे सब कितना,
देते थे उपहार ।


बैलों के मेले लगते थे,
घुंगरूँ गले  में बजते थे।
टी वी और मोबाइल ना था,
ढोल नंगाड़े बजते थे ।
कुओं के वो रहट चिड़श,
भरते थे खेत और क्यार ।
ऐ बचपन फिर लौट के आजा,
वापिस तू एक बार ।
लाड लड़ाते थे सब कितना,
देते थे उपहार ।


"सावन चौहान कारौली" एक नादान कलमकार
https://sawankigazal.blogspot.com/2019/07/blog-post.html?m=1