चस्का बुरो शराब को - दोहा संकलन
गधा करे दोऊ घूंट में, जातै नाम शराब ।।
या पानी के फेर में, बहुत हुए बर्बाद ।
ओंधे मुँह गिरते देखे, बड़े बड़े उस्ताद ।।
जान सहारो पिवत है , कबहुं सहारै नाय ।
रेत खेत कर देत है, जो या रस्ता जाय।।
पैसो जावै इज्जत जावै, घर को हो सत्यानाश ।
या मतवारे पानी को, लगो बुरो होय चाश ।।
या लत को अन्धो मनुज, घर के बेकै भांड ।
शर्म हया सब बेच दे, करै नये नित काण्ड ।।
पीकै घूँट शराब की, घर में करै क्लेश ।
सज्जन से दुर्जन बनै, संत बनै लंकेश ।।
चस्का बुरो शराब को, राजन खोये राज ।
ऐसो मद या मदिरा को, बने बिगाड़े काज ।।
बोल बोल रहयो बड़े बहुत, आज बेवरा एक ।
बनो फिरै है चौधरी, खेत खूड दिए बेक ।।
समझायो समझो नहीं, ना मानो वो बात ।
पैर पकर बेटा खिंचे, बीवी दे रही लात ।।
कुत्ता चाटे मुँह माथो, पीकै देवै जात ।
सावन ऐसे सूरमा, करते हैं बड़ी बात ।।
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सावन चौहान कारौली- एक कलमकार
भिवाड़ी अलवर राजस्थान
मो.9636931534
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