इक तेरी आरजू में ज़िंदा था अब तलक,
तू आया नहीं और मैं जीते जी मर गया।
मौसम ये भीगा भीगा सा शोलों को हवा देता है ।
यादों का झोका आता है, हंसतों को रुला देता है ।।
ये बदली काली काली सी, सिने में आग लगाती है ।
ये ठंडी ठंडी बूँदें भी चिंगारी सी भड़काती हैं ।
उसपे ये कूकना कोयल का मेरे दिल को दहला देता है ।।
मौसम ये भीगा भीगा…
कभी बनती नहीं उजालों से, अंधेरों से याराना है ।
मुझे महफिल रास नहीं आती, कुछ ऐसा मेरा फ़साना हैं
संज धज के सितारों का आना, मेरी नींद उड़ा देता है ।।
मौसम ये भीगा भीगा …
तकदीर बनाने वाले ये, तूने ऐसा खेल रचाया क्यों ।
गर लिखी जुदाई किसमत में, फेर तूने ये मेल मिलाया क्यों ।
फूलों पे भ्रमर का मंडराना, एक दर्द जगा देता है ।
मौसम ये भीगा भीगा…
सदियों से रहती आई है, दुनियां दुश्मन दीवानों की ।
जलना ही क्यों हैं किसमत में, इन आशिक इन परवानों की ।
जब आये बहारें बागों में, कोई अश्क बहा देता है ।।
मौसम ये भीगा भीगा…
हालत देखी नहीं जाती है, सावन इन बहती आखों की ।
बस डोरी टूटने वाली है, मेरी इन उखड़ती सांसों की ।
पत्थर भी पिंघल जाये सुन कर, दिल ऐसी सदा देता है
मौसम ये भीगा भीगा …
“सावन चौहान करौली” एक कलमकार
भिवाड़ी अलवर राजस्थान
मो.9636931534
Nice line sir..
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