Arakshan ki balivedi par
आरक्षण का लाभ मिला बस चमचों और दलालों को
हकदारों का बच्चा तरसे रोटी के दो निवालों को
ख़ामोशी से सब सह जाना कायरता ये हमारी है
कभी किसी ने कभी किसी ने लूटा बारी बारी है
सत्ता पाने की खातिर एक जाल बिछाया जाता है
जात-पात हिन्दू-मुश्लिम कर हमे लड़ाया जाता है
कौवा मोती चुगे रात दिन, हंस तरसता दानों को
होनहार भटके दर दर सम्मान मिले बेइमानों को
आरक्षण की बलि वेदी पर वोट पकाई जाती है
काबिल बच्चों की गर्दन पर छुरी चलाई जाती है
कहीं खुली गुटबाजी चलती, कहीं पे जातिवाद चले
मानवता को ढूंढ रहा हूँ, जिसकी कमी बहुत ही खले
कहीं खुली गुटबाजी चलती, कहीं पे जातिवाद चले
मानवता को ढूंढ रहा हूँ, जिसकी कमी बहुत ही खले
आरक्षण आधार शीला है, आज नोकरी पाने की
सावन हैं बस वोट कीमती, चढ़ रही भेंट सयानो की
सावन हैं बस वोट कीमती, चढ़ रही भेंट सयानो की
अगर है समता लानी हमको मिलकर बिगुल बजाना होगा
गहरी नींद में जो सोये है दे ललकार जगाना होगा
सावन चौहान कारोली- एक कलमकार
भिवाड़ी अलवर राजस्थान
https://www.writersindia.in/2019/07/ho-gaya-paisa-bada-insan-se.html?m=1
भिवाड़ी अलवर राजस्थान
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