लेखनी कलम
प्रचंड तेज सूरज सा इसमें ।
कलम उगलती है शोले ।।
दिल की पीर शब्द बन जाती ।
फिर जो काव्य रंग घोले ।।
फूलों सी नाजुक भी है ये ।
तेज कलम शमसीरों से ।।
अंगारे भी लिखती है ये ।
अनमोल शब्द भी हीरों से ।।
उठे क्रान्ति जब चलती है ।
इंकलाब का नाद उठे ।।
जब जब चले, जले दीपक सी ।
अन्धकार का नाम मिठे ।।
कड़वी मीठी दोनों जाने ।
नहीं डरे सच कहने से ।।
कही शस्त्र बनती तनती है ।
कही ये सजती गहनों से ।।
दर्द लिखे ये जख्मी दिल का ।
आँखों की लिखती भाषा ।।
कभी लिखे तन्हाई मन की ।
कभी लिखे ये अभिलाषा ।।
कभी प्रेम रस कभी वीर रस ।
विरह लिखे ये विरहन की।।
देश प्रेम जब जब लिखती है।
छाती कांपे दुश्मन की ।।
लू लिखे ये जेष्ठ मॉस की ।
लिखे फुवारे सावन की ।।
ठिठुरन लिखती है सर्दी की।
लिखे बहारें योवन की ।।
गीत फ़ाग के प्यारे लिखती।
और बौछारें रंगों की ।।
लिखे वीरता रणवीरों की ।
गाथा लिखती जंगों की ।।
फूल कभी खुशबू लिखती है ।
कभी खार तलवार लिखे ।।
जीत प्रशंसा लिखे अनोखी।
कभी कसकती हार लिखे।।
मेरी लेखनी दीवानी है ।
कुदरत का शृंगार लिखे ।।
तितली भंवरा कोयल दादुर।
मिलन की रुत और प्यार लिखे।।
सावन चौहन कारौली -एक नादान कलमकार...✍
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