कविता
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जाने किसको क्या दे डाला ,
लीला उस गिरधारी की ।
गन्ने में इतना मधुरस है,
और अश्रु बूँद है खारी सी ।
कैसे कैसे जीव बनाये ,
रूप रंग सबका न्यारा ।
कोवे को बदरंग बनाया,
बना मोर कितना प्यारा ।
चींटी कितनी हल्की बना दी,
हाथी को काया भारी दी
गन्ने में कितना मधुरस है,
और अश्रु बूँद है खारी सी ।
कोयल को आवाज सुरीली,
हंस को सुन्दर काया दी ।
निर्धन को कंगाली दे दी,
धनवानों को माया दी ।
साधु को संन्यास दिया ,
और ग्रस्थ को जीम्मेदारी दी ।
गन्ने में कितना मधुरस है ,
और अश्रु बूँद है खारी सी ।
कृपण को कंजूसी दे दी,
दानी को बड़े भाव दिये ।
विद्वानों को दिया ज्ञान,
और पहलवान को दाव दीये।
कहीं धन दौलत के ढ़ेर पड़े,
कहीं भूख प्यास लाचारी दी ।
गन्ने में कितना मधुरस है,
और अश्रु बूँद है खारी सी ।
पेड़ को सुदृढ़ तना दिया,
लचक लता को प्यारी दी ।
फूलों में रंग खूब भरा,
पत्तों की कतरन न्यारी सी।
सावन को दी कलम सांवरिया,
दी लिखने की लत प्यारी सी ।
जाने किसको क्या दे डाला,
लीला उस गिरधारी की ।
गन्ने में कितना मधुरस है,
और अश्रु बूँद है खारी सी ।
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“सावन चौहन कारौली” एक रचनाकार
भिवाड़ी अलवर राजस्थान
मो.9636931534
बहुत बहुत शुक्रिया स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए
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