रविवार, 7 जुलाई 2019

Vishdhar


Ek poem
विषधर

विषधर तजता नहीं जहर को,
चाहे दुग्ध पिला देना ।
पुष्प नहीं तजता है खुशबु ,
चाहे तुम आजमा लेना ।


कोयल कभी  कूकना, ना तजती,
खर मारना लात नहीं ।
दिन उजियारे को नहीं तजता,
तम को तजती रात नहीं ।

हीरा तजता नहीं चमकना,
चाँद तजे ना शीतलता ।
इंद्रधनुष कभी रंग तजे ना,
कलियाँ तजे ना कोमलता ।

सूर वीर ना तजते रण को,
शंक तजे आवाज नहीं ।
कस्तूरी नहीं तजे महकना,
और झपट्टा बाज़ नहीं ।

जल तजता नही प्यास मिटाना,
अग्नि तजती ताप नहीं ।
मिश्री तजति नहीं मधुरता,
भक्त तजे कभी जाप नहीं ।

तजे लोमड़ी चतुराई ना,
गर्जना तजता बाघ नहीं ।
कर्कसता तजता नही कोवा,
गायक सुर और राग नहीं ।

सज्जन तजता नहीं शीलता,
जैसे चाहे सता लेना ।
कवी नहीं तजता कविताई ,
जो आक्षेप लगा लेना ।  

कुछ लोग बुराई ना तजते,
राहो में फूल बिछा देना ।
सावन सहनशीलता ना तजिए,
आदर और घना देना ।

विषधर तजता नहीं जहर को,
चाहे दुग्ध पिला लेना ।
पुष्प नहीं तजता है खुशबू,
चाहे तुम अजमा लेना ।
"सावन चौहान कारौली" एक कवी
https://sawankigazal.blogspot.com/2019/06/blog-post_4.html?m=1


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