आज उनकी गली से गुजर सा गया ।
धड़कने रुक गई सब ठहर सा गया ।।
आ गया याद फिर दौर पिछला वही ।
जख्म फिर वो पुराना उभर सा गया ।।
भूल बैठा, गया था मैं किस काम से ।
ध्यान जाके वहां पे बिखर सा गया ।।
उसने शायद भुला ही दिया था मुझे ।
आँख मिलते ही चेहरा उतर सा गया ।।
बदली बदली लगी आज उसकी 'नजर'।
अपने वादे से शायद मुकर सा गया ।।
मैं चाह के भी "सावन" भुला ना सका ।
वो मेरी 'रूह' तक था उतर सा गया ।।
शायर-सावन चौहान कारौली
भिवाड़ी अलवर राजस्थान
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