कोई हिन्दू कोई मुस्लिम

कोई हिन्दू कोई मुस्लिम,
मगर इन्सां नदारद है ।
मजहब की आड में सावन,
फक्त होती सियासत है ।।
मेरे शरबत में विष दिखता है,
है अमृत जहर भी उनका ।
तरफदारी रकीबों की,
मेरे अपनों की फितरत है ।।
हम ने सीने से लगाया,
उसने खंज़र था छुपाया ।
वो कायरता समझता है,
हमारी जो शराफत है ।।
गुनहा से प्यार करते हैं,
वो छुपके वार करते हैं ।
तरक्की देख जलते हैं,
उनके बसकी ना मेहनत है ।।
Sawan chauhan karoli
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