यादों के काफिले
2122 2122 2122
जिसको चाहा है, गए उनसे छले हैंं
गर्दिशों की गौद में, हम तो पले हैं
रात भर जलता रहा बनके चरागा
जुगनुओं को नाज है की,हम जले हैं
सो गई दुनियाँ न नींदाई हमे ही
हम कमर के साथ सारी शब, ढले हैं
आग का दिल मोम जैसा है नरम सा
शबनमों के दिल् में भी, कुछ जलजले हैं
यूँ तो मेरे रूबरू रहता है जालिम
दरमियाँ लेकिन दिलों के, फासलें हैं
आरजू है आज भी सूरज को चूमूं
क्या हुआ जो इश्क में ये, पर जले हैं
तू गया जब से मैं तन्हा हूँ बहुत ही
साथ तेरी यादों के बस, काफ़िले हैं
बरसा होगा टूट के शब भर वो सावन
इस लिए रुख़्सार ये लगते धुले हैं
सावन चौहान कारोली
भिवाड़ी अलवर राजस्थान
23-04-2019
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Sawan ki Hindi kavita