बैरन मंदी

अबके डँस गई बैरन मन्दी ,सब कुछ बंटाधार हुआ ।
जिससे जीवन चलता था, चोपट वो; कारोबार हुआ ।।
ऐसी मन्दी....
बच्चों की फरमाइश और शब्जी के भाव चिड़ाते है ।
तंगहाली पर्वत सी हुई है, और रुखा सुखा खाते है ।
भूख प्यास और नींद लगे ना जीना तक दुस्वार हुआ ।।
ऐसी मन्दी...
जो सच्चे साथी बनते थे, साथ सभी वो छोड़ गये ।
चहल पहल और हंसी मसकरी,जाने सब किस ओर गये ।
जो बाँहों में भरता था, वो "जालिम" साहूकार हुआ ।।
ऐसी मन्दी...
आने लगे तकाजे अब तो,घर पे ही आसामी के ।
रोज ही बादल घिर आते है सर पे अब बदनामी के ।
सारी राहें बन्द हुई हैं अब के यूँ लाचार हुआ ।।
ऐसी मन्दी...
सारे रिश्ते नाते देखे, भाई देखे माँ जाये ।
समय ने ऐसा दृश्य दिखाया, सब कुछ लिखा नहीं जाये ।
नाजुक इन हालातों में जज्बातों तक पे वार हुआ ।।
ऐसी मन्दी…
शुक्र करूँगा तेरा फिर भी, ऐ मालिक मेरे दाता ।
कैसे लिखता इन भावों को, ये दिन जो ना दिखलाता ।
वो समझे मेरे मन को सावन, कलम से जिसको प्यार हुआ ।।
ऐसी मन्दी…
जिससे जीवन...
“सावन चौहन कारौली” एक नादान कलमकार
भिवाड़ी अलवर राजस्थान
मो. 9636931534
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Sawan ki Hindi kavita