बुधवार, 31 जुलाई 2019

भूख का रंग

   
Kavywati काव्यवटी
       
       भूख का रंग


मस्त महीना, रुत सावन की।
काव्यवटी एक हमने घोटी।।

पंडित जी ने दाढ़ी रखली।
मुल्ला जी ने रखली चोटी।।

सब ने अपनी दाल गला ली।
जिसकी जैसे बैठि गोटी।।

उसको उतना ऊँचा ओहदा।
जिसकी जितनी नीयत खोटी।।

चोर लुटेरे अफसर नेता
जनता की ही किस्मत भोटी।।

दाव लगा कर लूट रहे हैं ।
चारा,भूमि, कॉल औ टोंटी।।

बंटे रेवड़ी आरक्षण की।
योग्य छात्र की नानी मोटी ।।

चँदा जैसी चमक रही है।
उंचे ठग की ऊंची कोठी।।
रंग भूख का मुफ्लिस जाने
ख़ाब में भी आती हैं रोटी।।

सावन चौहान कारोली- सृजक
भिवाड़ी अलवर राजस्थान

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