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शायद वो नेता है
माहिया छंद में एक कविता सृजन
हाय कैसा ज़माना है
गिरवी रख कर इमां
बस पैसा कमाना है
बड़ा अजब तमासा है
इस कारीगर को खुद
उस बुत ने तरासा है
कैसा झांसा देता है ।
करे बात बहुत मीठी,
शायद वो नेता है ।
वो जो भींख माँगता है ।
स्वभाव अमीरों का,
सच में वो जानता है ।
ये कैसा आरक्षण है ।
सब खेल है वोटों का
मूल्यों का भक्षण है ।
माना शब काली है ।
दस्तक है उजालों की
सुबहा आने वाली है ।
"सावन चौहान कारौली" एक कलमकार
भिवाड़ी अलवर (राजस्थान)
"शायद वह नेता है"