गुरुवार, 7 नवंबर 2019

मेरे हुजरे में कभी आओ
अदब का चाँद रखता हूँ

होशलों की दीवारें
और छान रखता हूँ

सेज मखमल की मुनासिब न हो शायद
टूटी खटिया है मगर सम्मान रखता हूँ

हक किसी मजलूम का खाता नहीं मैं
चटनी रोटी में मगर ईमान रखता हूँ

न मिले पकवान शायद महलों से....

Sawan

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Sawan ki Hindi kavita