मेरे हुजरे में कभी आओ
अदब का चाँद रखता हूँ
होशलों की दीवारें
और छान रखता हूँ
सेज मखमल की मुनासिब न हो शायद
टूटी खटिया है मगर सम्मान रखता हूँ
हक किसी मजलूम का खाता नहीं मैं
चटनी रोटी में मगर ईमान रखता हूँ
न मिले पकवान शायद महलों से....
Sawan
अदब का चाँद रखता हूँ
होशलों की दीवारें
और छान रखता हूँ
सेज मखमल की मुनासिब न हो शायद
टूटी खटिया है मगर सम्मान रखता हूँ
हक किसी मजलूम का खाता नहीं मैं
चटनी रोटी में मगर ईमान रखता हूँ
न मिले पकवान शायद महलों से....
Sawan
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Sawan ki Hindi kavita