मंगलवार, 1 दिसंबर 2020

Udar ki aag- परदेस



परदेस

वज़्न-2122 2122 212


काफ़िया- आन की बंदिश


रदीफ़-हैं/है


गांव की गालियाँ सभी वीरान हैं

शह्र की सड़के पड़ी सुनसान हैं -मतला


इस उदर की आग ने बेबस किया

इसलिए #परदेश में मेहमान हैं-१


राह तकती आज घर पे बूढ़ी' माँ

बाप की अटकी हलक में जान है -२


ख़ौफ में है जिंदगी की तितलियाँ

आज मुश्किल में खिले बागान हैं-३


शोर है हर ओर ही बस मौत का

ये करोना लील लेता जान हैं-४


देख के तस्वीर रोया दिल बहुत

वो कोई बच्चा है या सामान हैं-५


लौट जाने को, मिला साधन नहीं

कारवाँ पैदल चढे परवान हैं-६


जान तक पे खेल के जो लड़ रहा

चारगर ही आज तो भगवान हैं -९


भूख पैसों से नहीं मिटती हुजू'र

हलधरों के हम पे ये एहसान हैं-८


खेंच कर फोटो तमाशा कर दिया

 ये मदद थी या हुए अपमान हैं-७


गजलकार-सावन चौहान करोली

18-05-2020

https://sawankigazal.blogspot.com/2019/06/blog-post_4.html?m=1