वज़्न-2122 2122 212
काफ़िया- आन की बंदिश
रदीफ़-हैं/है
गांव की गालियाँ सभी वीरान हैं
शह्र की सड़के पड़ी सुनसान हैं -मतला
इस उदर की आग ने बेबस किया
इसलिए #परदेश में मेहमान हैं-१
राह तकती आज घर पे बूढ़ी' माँ
बाप की अटकी हलक में जान है -२
ख़ौफ में है जिंदगी की तितलियाँ
आज मुश्किल में खिले बागान हैं-३
शोर है हर ओर ही बस मौत का
ये करोना लील लेता जान हैं-४
देख के तस्वीर रोया दिल बहुत
वो कोई बच्चा है या सामान हैं-५
लौट जाने को, मिला साधन नहीं
कारवाँ पैदल चढे परवान हैं-६
जान तक पे खेल के जो लड़ रहा
चारगर ही आज तो भगवान हैं -९
भूख पैसों से नहीं मिटती हुजू'र
हलधरों के हम पे ये एहसान हैं-८
खेंच कर फोटो तमाशा कर दिया
ये मदद थी या हुए अपमान हैं-७
गजलकार-सावन चौहान करोली
18-05-2020
https://sawankigazal.blogspot.com/2019/06/blog-post_4.html?m=1