रविवार, 19 अप्रैल 2020

कुछ फरिस्ते आ रहे हैं





अश्क अपने पी रहे हैं
तिरगी' को खा रहे है-मतला

आदमी के भेष धर के
कुछ फरिश्ते आ रहे है-१

चैन इनको हैं कहाँ पर
ये कहाँ सो पा रहे है-२

बिन किए परवाह अपनी
मौत से टकरा रहे हैं-३

धर्म अपना ये बखूबी
हर कदम, हि निभा रहे है-४


छोड़ कर घर-बार अपना
सब की' कर सेवा रहे हैं -५

चारा'गर औ वर्दी' वाले
जख्म सर पे खा रहे हैं-६

कुछ दरिंदे मौका, पा कर
आग सी भड़का रहे है-७

दीन की तालीम वाले
मौत लो बटवा रहे हैं-८

खो गई इनकी हया तक
ढाल बन जो दिखा रहे हैं-९

कलमकार-सावन चौहान कारोली


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