अश्क अपने पी रहे हैं
तिरगी' को खा रहे है-मतला
आदमी के भेष धर के
कुछ फरिश्ते आ रहे है-१
चैन इनको हैं कहाँ पर
ये कहाँ सो पा रहे है-२
बिन किए परवाह अपनी
मौत से टकरा रहे हैं-३
धर्म अपना ये बखूबी
हर कदम, हि निभा रहे है-४
छोड़ कर घर-बार अपना
सब की' कर सेवा रहे हैं -५
चारा'गर औ वर्दी' वाले
जख्म सर पे खा रहे हैं-६
कुछ दरिंदे मौका, पा कर
आग सी भड़का रहे है-७
दीन की तालीम वाले
मौत लो बटवा रहे हैं-८
खो गई इनकी हया तक
ढाल बन जो दिखा रहे हैं-९
कलमकार-सावन चौहान कारोली
thanks bro
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