बढ़ चलो
उठ चलो पथ कह रहा है
बढ़ चलो पथ कह रहा है ।
रुक गया तो है अँधेरा,
है निरन्तरता सवेरा,
निर्मल तब तक नीर नदी का,
जब तलक वो बह रहा है ।
उठ चलो पथ... ,
बढ़ चलो पथ ... ।
मंजिल जो उस पार मिलेगी,
ठहर गये तो हार मिलेगी ।
पहुँच के ही आराम तू करना,
स्वप्न अधूरा कह रहा है ।
उठ चलो पथ... ,
आगे बढ़ो पथ ... ।
बहुत से गतिरोध भी, आएंगे तेरी राह में ,
मोहने कुछ दृश्य भी ,खीचेंगे अपनी बाँहों में ।
लक्ष्य पे रख ले निगाहें, लक्ष्य भी आ कह रहा है ।
उठ चलो... ,
बढ़ चलो... ।
बढ़ता चल तू शीलता से,
डर ना तूफानी हवा से ।
दुर्गम राह देख ना डरना,
जो ना डटा, जय रहा है ।
उठ चलो... ,
बढ़ चलो... ।
माना गहरी रात है काली,
सुबहा भी होगी निराली ।
सावन चिंतन करले थोडा,
भाव में क्यों बह रहा है ।
उठ चलो पथ कह रहा है ,
बढ़ चलो पथ कह रहा है ।
"सावन चौहान कारौली" एक नादान पथिक ।
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