भूरा बैल
एक बैल की जोड़ी जिसमें, भूरा बैल हमारा था ।
छोटा सा धरती का टुकड़ा, जो बस मात्र सहारा था ।।
एक छप्पर मिटटी का बना थ, जिसकी छान पुरानी थी ।
बारिस में बुँदे गिरती थी, आसमान से पानी की ।
याद मुझे वो दौर ना भूला, कैसे वक़्त गुजारा था ।।
एक बैल…
रात दिना मेहनत कर के, माँ पापा फसल उगाते थे ।
काट पिट कर खेत के पैर में, बैलों से उसे गहाते थे ,
ज्यादा तो बनिया ले जाता, जो बच जाता हमारा था ।।
एक बैल… ,
छ: महीने मुश्किल था निकलना, काम नहीं चल पाता था ।
लेते ओर किसी से उधार, वो कोई शर्त बताता था ।
क्या करते पापा बेचारे, और ना कोई चारा था ।।
एक बैल…
उपर के खर्चे थे और भी, मात पिता ने था पाला ।
बीमारी और शादी ब्याह में, सिर्फ सहारा था लाला ।
सावन वो दिन भी देखा जब, बैल हमारा हारा था ।।
एक बैल की जोड़ी …
छोटा सा धरती का टुकड़ा,
जो बस मात्र सहारा था ।।
“सावन चौहान कारोली“ एक कलमकार
अ0 भा0 सा0परिषद
भिवाड़ी अलवर राजस्थान
मो.9636931534
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