गाँव- शहर
तो कितना अच्छा होता ।
आपस में वो लगाव भी होता,
तो कितना अच्छा होता ।
चौपाडों पे सब मिल बैठते,
सुनते बात तजुर्बों की ।
सिर्फ किताबी ज्ञान ना होता,
लेते सीख बुजुर्गों की ।
रिश्तों में ठहराव भी होता,
तो कितना अच्छा होता ।
शहर के दिल में गाँव भी होता,
तो कितना अच्छा होता ।
आपस में वो लगाव भी होता,
तो कितना अच्छा होता ।
पैसे का अभिमान ना होता,
होती कद्र आदमी की ।
चाहें गरीबी वो ही होती,
मिलती झलक सादगी की ।
आधुनिक बरताव ना होता,
तो कितना अच्छा होता ।
शहर के दिल में गाँव भी होता,
तो कितना अच्छा होता ।
आपस में वो लगाव भी होता,
तो कितना अच्छा होता ।
अपनापन वो गाँव सा होता,
स्वार्थ ना होता नातों में
चेहरे पे चेहरा ना होता,
सत्यता होती बातों में ।
सूरत सा स्वभाव भी होता,
तो कितना अच्छा होता ।
शहर के दिल में गाँव भी होता,
तो कितना अच्छा होता ।
आपस में वो लगाव भी होता,
तो कितना अच्छा होता ।
दया,धर्म और प्रेम भी होता,
Sh भी होती आँखों में ।
ईमान पुराने दौर सा ही,
मिल जाता शख्त हालातों में ।
वो आदर वो चाव भी होता,
तो कितना अच्छा होता ।
शहर के दिल में गाँव भी होता,
तो कितना अच्छा होता ।
आपस में वो लगाव भी होता,
तो कितना अच्छा होता ।
सावन चौहान करौली - रचनाकार
भिवाड़ी अलवर राजस्थान
https://sawankigazal.blogspot.com/2019/07/fouji-vatan-ki-shan-hai-fouji.html?m=1
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