Muflis ke ghar
वज़्न -212 212 212 212
इसी बह्र पर एक गाना - तुम अगर साथ देने का वादा करो
आ गया लौट मौसम चुनाओं का फिर
रोशनी घर गरीबों के रुकने लगी
रोशनी घर गरीबों के रुकने लगी
देख कर जात नेता की उल्लू डरे
बेहयाई भी इन आगे झुकने लगी
बेहयाई भी इन आगे झुकने लगी
रात उसने गुजारी है मुफलिस के घर
झोपड़ी आज जन्नत सी दिखने लगी
झोपड़ी आज जन्नत सी दिखने लगी
सिर्फ मुद्दा गरीबी है इनके लिए
फिर से रोटी चुनावी है सिकने लगी
फिर से रोटी चुनावी है सिकने लगी
एक अरसे से जो हाँसिये पर रहे
उनकी हालत चुनाओं मे बिकने लगी
उनकी हालत चुनाओं मे बिकने लगी
काम चोरी है इनका ये सब चोर है
सब कमीनों की औकात दिखने लगी
सब कमीनों की औकात दिखने लगी
इन रईसों को आदत नहीं धूप की
गौरी चमड़ी तपत से पिघलने लगी
गौरी चमड़ी तपत से पिघलने लगी
चाल इनकी पुरानी समझते है सब
सोच पब्लिक की शायद बदलने लगी
सोच पब्लिक की शायद बदलने लगी
कौन खोटा, खरा कौन सावन यहाँ
सारी सच्चाई जनता समझने लगी
ऐसा शोलों से क्या कह गई ये हवा
आग जो बेतहासा भड़कने लगी
आग जो बेतहासा भड़कने लगी
सावन चौहान करोली -ग़ज़लकार
https://sawankigazal.blogspot.com/2019/07/fouji-vatan-ki-shan-hai-fouji.html?m=1
https://sawankigazal.blogspot.com/2019/07/fouji-vatan-ki-shan-hai-fouji.html?m=1
👍👍🙏🙏
जवाब देंहटाएं