"सत्य पथ"
ऐ मनुज उलझा कहाँ है,
ध्येय से भटका है क्यों ।
छल है ये सगरा दिखावा,
दुनियाँ के बाज़ार में ।।
बन्द अँधा अनुसरण कर,
आधुनिक इस सोच का ।
सीख की कमी नहीं,
तेरे पैतृक संस्कार में ।।
आधुनिकता ठीक है पर,
संस्कृति भूल मत ।
आदर प्रेम दया क्षमा,
रखना तू व्यवहार में ।
शत्रु नहीं माँ बाप है तेरे,
ना समझ इनको ग़लत ।
सफलता की कुञ्जी है,
माँ बाप की फटकार में ।।
जर कमा शौहरत भी पा,
पर ! मत मशीन बन जाना ।
अच्छा नहीं होता गर पीपल,
उग आए दीवार में ।।
जिन्दगी के पौधे में,
ईमान का भी पानी दे ।
रखता है सबका हिसाब,
भेजा जिसने संसार में ।।
लालच ये दौलत का कितना,
एक दिन उलझाएगा ।
जोड़ जर जीने के लायक,
मत भटक बेकार में ।।
दीवरों से सीखले तू,
बोझ बांटने का गुण ।
सहानुभूति भी तू रखना,
हृदय के कोठार में ।।
सत्य पथ पे जब चलेगा,
अड़चने भी आयेंगी ।
लेकिन मंजिल भी मिलेगी,
मुश्किलों के पार में ।।
धर्म पथ प्रतिकूल तो है ,
लेकिन सत्य पथ यही ।
तारेगा ये पार सावन,
नौका बन मझदार में ।।
सावन चौहान कारौली-
भिवाड़ी अलवर राजस्थान
मो.9636931534
वाहहहह ! अतिसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंsarahniy pratikriya ke lie antas se abhar aadraniy
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