कब तक प्यारी बेटियां यूँ ही चढती रहेंगी भेंट
क्यों इस दहेज़ दैत्य का, भरता नही है पेट
ये कैसा लोभ -लालच है ? ये कैसी भूख है ?
हर दिन चिता पे लाड़ली जाती है किसी की लेट
ये आदमखोर रह रहे हैं तेरे मेरे ही दरमियान
यहॉँ मासूमों का कर रहे है ये दरिंदे आखेट
व्यापार हो रहे है, यहाँ शादियों के नाम पे
बेटे की परवरिश का खुल के मांगते हैं रेट
वो गिर पड़ा जमीन पे, लाड़ो की लाश देख कर
जिसकी करी थी शादी उसने खेत क्यारी बेक
अब जाग जा ऐ आदमी रश्मों को ऐसी तोड़ दे
ऐसी रिवाजों को सावन सदा के लिए दो मेट
सदा के लिए दो मेट
सदा के लिए दो मेट
सदा के लिए दो मेट…
“सावन चौहान करौली” एक नादान कलमकार
भिवाड़ी अलवर राजस्थान
मो.9636931534
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