आधुनिक औलाद
बुजुर्ग तो सबको होना है
जनक जननी खा रहे है,
दर दर देखो ठोकरें ।
बेटा जिसकी रईसी की,
चर्चा है अखबार में ।।
जनक जननी खा रहे है,
दर दर देखो ठोकरें ।
बेटा जिसकी रईसी की,
चर्चा है अखबार में ।।
कब तलक होती रहेगी,
बुजुर्गों की दुर्गती ।
कौनसी कमी रह थी,
इनके लाड प्यार में ।।
हो कोई कानून ऐसा,
जो बदलदे ये कुप्रथा ।
क्या कोई श्रवण सपुत्र,
नहीं है सरकार में ।।
बुजुर्ग होना है गुनाह तो,
तुम भी पहले ही, मर जाना ।
आधुनिक औलाद तेरे,
बैठी है इन्तजार में ।।
आँशु नहीं है खून है ये,
जो इन आँखों से बह रहा ।
ला देंगे ये जलजला,
वो दर्द है इस पुकार में ।।
क्यों ना देते मात पिता,
बेटी को शिक्षा सेवा की ।
सास श्वसुर माँ बाप बराबर,
नहीं क्या उनके विचार में ।।
बहु भी किसी की बेटी है और,
बेटी भी किसी की बहु होगी ।
कहीं ना कहीं तो हम भी शामिल,
हैं इस अत्याचार में ।।
जुम्मेदारी समझ के हम,
बेटी को गर ये सिखाएंगे ।
सास श्वसुर की सेवा का
गुण डालेंगे संस्कार में ।।
नीव जब अच्छी भरेगी,
नीड भी मजबूत होगा ।
ये बुराई ना रहेगी,
सावन इस संसार में ।।