रिश्ते नाते बंधन झूठे, सब के सब बेमानी है।।
जितना भी जिसको चाहा है, उसने उतने वार किए
दिल था इक नाजुक सा शीशा, टुकड़े कई हजार किए
बारी बारी सब ने लूटा, इस खंडहर की कहानी है
रिश्ते नाते बंधन…
जिसपे आश लगाई उसने दिल को घाव दिये गहरे।
गुरबत आई, दिये दिखाई, अपनों के बदले -चहरे।
ऐसा हाल हुआ मिसरे का, कहीं ऊला कहीं सानी है
रिश्ते नाते बंधन…
उनकी खरोंच भी बड़ा जख़्म है मेरा जख़्म भी जख़्म नहीं
मैं उनकी सिसकी पे भी सहमूँ, उनका कोई ‘धर्म’ नही ?
वो जो कहे वो सब कुछ ठीक है बाकी नाफर्मानी है
रिश्ते नाते बंधन…
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सावन चौहान कारोली
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